शांति की उम्मीद और एक धोखेबाज़ सुबह
Ceasefire : शनिवार, 11 मई 2025। भारत और पाकिस्तान के बीच अमेरिकी मध्यस्थता में हुआ युद्धविराम समझौता दोनों देशों के नागरिकों के लिए राहत की सांस लेने जैसा था। लेकिन यह राहत महज कुछ घंटों की ही साबित हुई। समझौते के तीन घंटे बाद ही पाकिस्तान ने सीजफायर का उल्लंघन करते हुए श्रीनगर में ड्रोन हमला किया, जिसके बाद अमृतसर में रेड अलर्ट घोषित करना पड़ा। यह घटना न केवल भारत-पाक संबंधों में नई बदहवासी का प्रतीक है, बल्कि एक बार फिर उस ऐतिहासिक पैटर्न को उजागर करती है, जिसके बारे में प्रख्यात जियोपॉलिटिकल एक्सपर्ट ब्रह्मा चेलानी ने चेतावनी दी है: “भारत जीत के मुंह से हार चुनने की अपनी पुरानी राजनीति को दोहरा रहा है।”
समझौता, उल्लंघन, और एक नई चिंता
अमेरिका की मध्यस्थता में हुए इस समझौते को भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने “स्थायी शांति की दिशा में पहला कदम” बताया था। समझौते के अनुसार, दोनों देशों के सैन्य अभियान महानिदेशकों (DGMO) ने शनिवार दोपहर 3:30 बजे युद्धविराम की पुष्टि की। लेकिन, शाम होते-होते पाकिस्तानी सेना ने नियंत्रण रेखा (LoC) के पास गोलीबारी शुरू कर दी और श्रीनगर में ड्रोन हमला किया। यह हमला न केवल समझौते का सीधा उल्लंघन था, बल्कि पाकिस्तान की उस मानसिकता को भी दिखाता है, जो भारत के “शांतिपूर्ण इरादों” को कमजोरी समझती है।
ब्रह्मा चेलानी का सवाल:
“जब भारत सैन्य रूप से बढ़त में था, तो तनाव कम करने का फैसला क्यों किया गया? यह फैसला उसी पुरानी रणनीति का हिस्सा है, जहां हम जीत को हार में बदल देते हैं।”
इतिहास की पुनरावृत्ति – क्या भारत सबक भूल गया?
ब्रह्मा चेलानी ने अपने इंटरव्यू में एक गहरा सवाल उठाया: “क्या भारत इतिहास से सीखने में विफल रहा है?” उन्होंने 1971 के युद्ध, कारगिल संघर्ष, और 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक जैसे उदाहरण दिए, जहां भारत ने सैन्य सफलता के बावजूद स्थायी रणनीतिक लाभ हासिल नहीं किए।
ऑपरेशन सिंदूर का सबक:
2016 के सर्जिकल स्ट्राइक (ऑपरेशन सिंदूर) के दौरान भारत ने पाकिस्तान में घुसकर आतंकी ठिकानों को नष्ट किया था। यह कार्रवाई 26 सैनिकों की शहादत का प्रतिशोध थी। चेलानी के अनुसार, “उस समय भारत ने एक स्पष्ट संदेश दिया था, लेकिन आज हम उसी दृढ़ता को भूलते दिख रहे हैं।”
सैन्य शक्ति vs राजनीतिक इच्छाशक्ति – कहाँ है संतुलन?
चेलानी ने इस संकट के दौरान भारत और पाकिस्तान की सैन्य क्षमताओं का तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया:
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ड्रोन और मिसाइल तकनीक: पाकिस्तान ने भारी संख्या में ड्रोन और मिसाइल दागे, लेकिन उनमें से अधिकांश नाकाम रहे। वहीं, भारत ने सीमित संख्या में हमले किए, लेकिन लक्ष्यों को सटीकता से भेदा।
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वायु सुरक्षा: पाकिस्तान की वायु सुरक्षा भारत के मुकाबले कमजोर साबित हुई, जिससे भारतीय सेना को रणनीतिक लाभ मिला।
चेलानी की टिप्पणी:
“सैन्य बढ़त होने के बावजूद भारत ने दबाव कम करने का फैसला किया। यह निर्णय न केवल अवसर गंवाने जैसा है, बल्कि पाकिस्तान को भविष्य में और उकसावे का संकेत देता है।”
अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता – क्या अमेरिका की भूमिका विवादास्पद है?
इस संकट में अमेरिका की मध्यस्थता पर भी सवाल उठे हैं। चेलानी के अनुसार, “अमेरिका हमेशा से पाकिस्तान का रणनीतिक साथी रहा है। क्या यह मध्यस्थता वास्तव में निष्पक्ष थी, या भारत पर दबाव बनाने की कोशिश?”
भारत की चुनौती:
विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान से “जवाबी कार्रवाई” का आह्वान किया है, लेकिन सवाल यह है कि क्या राजनीतिक स्तर पर दृढ़ता दिखाई जाएगी?
जनता और सेना का मनोबल – दोहरे प्रभाव
पाकिस्तानी उकसावे का सीधा प्रभाव सीमावर्ती इलाकों के नागरिकों और सैनिकों के मनोबल पर पड़ा है। अमृतसर में रेड अलर्ट के बाद सुरक्षा बलों को अतिरिक्त सतर्कता बरतनी पड़ी। वहीं, सेना ने पाकिस्तानी गोलीबारी का मुंहतोड़ जवाब देने का दावा किया है।
एक सैनिक की आवाज़:
“हम तैयार हैं, लेकिन हमें स्पष्ट नीति चाहिए। राजनीतिक फैसले अक्सर हमारी कुर्बानियों को व्यर्थ कर देते हैं।”
भविष्य की राह – क्या भारत इतिहास बदल पाएगा?
ब्रह्मा चेलानी का मानना है कि भारत को अपनी रणनीति में तीन बदलाव करने होंगे:
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सैन्य सफलता को राजनीतिक लाभ में बदलना: सीमा पार कार्रवाई के बाद कूटनीतिक दबाव बनाए रखना।
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अंतरराष्ट्रीय समर्थन सुनिश्चित करना: अमेरिका और यूरोप को पाकिस्तान के प्रति सख्त रुख अपनाने के लिए राजी करना।
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घरेलू एकजुटता: आतंकवाद के खिलाफ जनता और राजनीतिक दलों को एक मंच पर लाना।
चेलानी का अंतिम वक्तव्य:
“इतिहास अच्छे नजरिए से नहीं देखेगा अगर हमने इस बार भी अवसर गंवाया। जीत की दहलीज पर खड़े भारत को हार का स्वाद नहीं चखना चाहिए।”
निष्कर्ष:
एक राष्ट्र का संकल्प
भारत-पाकिस्तान संबंधों का यह नया अध्याय न केवल सैन्य, बल्कि मानसिक लड़ाई का भी प्रतीक है। जहां एक ओर सेना ने अपनी क्षमता साबित की, वहीं राजनीतिक निर्णयों पर सवाल खड़े होना चिंता का विषय है। ब्रह्मा चेलानी जैसे विशेषज्ञों की चेतावनी इस बात की याद दिलाती है कि “इतिहास तब तक दोहराता रहेगा, जब तक हम उससे सीखना नहीं चाहते।”
भारत के सामने अब वही पुराना सवाल है: क्या हम इस बार इतिहास को दोहराने देंगे, या एक नई इबारत लिखेंगे?
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